देहरादून। प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग द्वारा मंगलवार को ऑनलाइन अतिथि व्याख्यान आयोजित किया गया। जिसमें मुख्य वक्ता डॉ. टीएस रविशंकर पूर्व निदेशक, एपिग्राफी, भारतीय पुरातत्व विभाग मैसूर के द्वारा शिक्षा व्यवस्था के बारे में अभिलेखीय संदर्भों के माध्यम से जानकारी दी गई।
उन्होंने कहा कि ऐसे कई उदाहरण हैं जिसमे तत्कालीन शिक्षा व्यवस्था की अभिलेखीय जानकारियां प्राप्त होती है। बताया गया की शिक्षा के मुख्यता दो प्रकार के संस्थान होते थे। जिसमें प्रथम श्रेणी राजसी व्यक्तियों के लिए और दूसरे आमजन के लिए जिसके प्रमाण हमें रामायण एवं महाभारत में भी मिलते है।
शिक्षा प्राप्त करने वालों को शिष्य कहा जाता था जो अभी भी उपयोग में आता है। शीष्णी शब्द का प्रयोग महिला विद्यार्थियों के लिए किया जाता था। शिक्षकों को करों से मुक्त रखा जाता था। उन्होंने आगे ये भी बताया कि दक्षिण भारत में कई मठों में मुख्यता शिक्षा केंद्र स्थापित थे। जिसने पुरातन शिक्षा को बढ़ावा दिया।
कन्या गुरुकुल की समन्वयक प्रो रेणु शुक्ला ने कहा कि ऐसे व्याख्यानों के द्वारा ही हम आज की पीढ़ियों को अपनी प्राचीन धरोहरों से अवगत करवा कर उन्हें प्राचीन भारतीय शिक्षा व्यवस्था के स्वर्णिम युग की जानकारी दे सकते है।
डॉक्टर अर्चना ने ऑनलाइन व्याख्यान का संचालन किया एवं धन्यवाद ज्ञापन दिया।
ऑनलाइन विशिष्ठ व्याख्यान में विभिन्न कॉलेजों से शिक्षकों एवं विद्यार्थियों ने सक्रिय प्रतिभाग किया।
व्याख्यान में डॉक्टर हेमलता, डॉक्टर हेमन, डॉक्टर सविता, डॉक्टर बबिता, डॉक्टर रेखा, डॉक्टर अंजुलता, डॉक्टर रिचा, डॉक्टर ममता, डॉक्टर रचना, डॉक्टर रीना आदि का योगदान रहा ।