देहरादून।
हरितालिका तीज सम्पूर्ण विश्व में रहने वाले हिंदु समाज में महिलाओं का एक पवित्र ,धार्मिक, सौभाग्यशाली पर्व है । वैसे तो यह पर्व पूरे भारत के विभिन्न राज्यों जैसे बिहार, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, हिमाचल प्रदेश एवं उत्तराखण्ड में बडी़ धूमधाम से मनाया जाता है, परंतु गोर्खाली समाज की महिलाएँ अपने पति की दीर्घायु, जन्म-जन्मांतर प्रेम एवं परिवार में सुख शांति, कल्याण हेतु पूर्ण रूप
से निर्जला व्रत रखकर मनाती हैं। इस बार यह व्रत 30 अगस्त को मनाया जाएगा।
हरितालिका तीज गोर्खाली समाज की विवाहित महिलाओं के लिए महान धार्मिक एवं मांगलिक पवित्र अनुष्ठान है। इस व्रत को अविवाहित कन्यायें भी योग्य वर पाने के लिए रखती हैं।
गोर्खाली सुधार सभा की मीडिया प्रभारी प्रभा शाह ने बताया कि हरितालिका तीज एक धार्मिक एवं पवित्र पर्व है और लोकगीत संगीत एवं लोकनृत्य इस पर्व की आत्मा है | तीज पारम्परिक रूपमें देवी पार्वती के संग भगवान शिव को समर्पित पर्व है ।यह तीन दिनों तक चलने वाला लम्बा अनुष्ठान है।
हरितालिका तीज के प्रथम दिन को दर खाने दिन कहते हैं । इस दिन विवाहित महिलाओं को मायके में पारम्परिक भोज हेतु आमंत्रित किया जाता है। सभी महिलाएं सुंदर परिधानों – गहनों से सुसज्जित होकर एक ही स्थान पर एकत्रित होकर लोकगीतों की ताल पर सामुहिक नृत्य करती हैं। साथ ही साँयकाल में प्रीतिभोज का आयोजन किया जाता है। जिसमें विभिन्न गोर्खाली लजीज व्यंजन – मीठी ढकने खीर, हलवा , मिठाई , सेलरोटी , अनरसा, पूरी , चटनी एवं अन्य पकवानों का भरपेट आनंद लेती है । यह रंगारंग आयोजन अर्द्धरात्रि तक होता है। इस परम्परा को दर खाने कहते है। तत्पश्चात अर्द्ध रात्रि के बाद 36 घंटे का कठोर निर्जला मुख्य व्रत आरंभ होता है।
दरखाने की परम्परा को मायके में मनाने का चलन है | दरखाने की परम्परा इसलिए भी मनायी जाती है कि महिलाएं व्रत रखने से एक दिन पहले स्वादिष्ट और पौष्टिक व्यंजनों को भरपेट खाये जिससे अगले 36 घंटे के कठिन निर्जला व्रत की अविधि में उन्हें भूख, प्यास और कमजोरी अनुभव न हो।
इस वर्ष 29 अगस्त 2022 को दर खाने के पश्चात अर्धरात्रि से मुख्य हरितालिका तीज व्रत प्रारंभ हुआ।
मंगलवार 30 अगस्त 2022 को मुख्य व्रत का दिन है | महिलाएँ इस निर्जला व्रत का कठोरता के साथ पालन करती हैं । इस दिन महिलाएँ लाल परिधान व पारम्परिक गहने – पोते , छडंके तिलहरी पहनकर सजधज कर सोलह श्रृंगार करके घर आँगन में सामुहिक रूप में तीज के लोकगीत गीत गाते हुए नृत्य करती हैं, और पवित्र भावना से व्रत रखते हुए पूजा अर्चना के लिए निकट के शिवमंदिर जाते हुए देखना एक सुखद एवं मनमोहक दृश्य होता है | वहाँ शिवलिंग पर फूल -पाती , फल एवं जल अर्पित करते हुए पति की दीर्घायु एवं परिवार के कल्याण केलिए प्रार्थना करती हैं ।पूजा अर्चना के क्रम में महत्वपूर्ण पूजा सायंकाल को मिट्टी के दिये में अखण्ड जोत जलाकर की जाती है। यह दिया पूर्ण रात्रि भर अखण्ड जलता है और महिलाए रात्रि भर भजन कीर्तन पर नाच गान करते रात भर जागकर अखण्ड जोत की रक्षा करती हैं।विवाहित महिलाओ को यह दिया उनकी सासू आमा द्वारा दिये जाने की परम्परा है।
तीज पर्व के तीसरे दिन –गणेश चतुर्थी ( 31 अगस्त)के दिन महिलाए प्रात: काल स्नान करके ,शुद्ध मन से एक बार फिर अखण्ड दिये और भगवान शिव एवं माता पार्वती की पूजा अर्चना करती हैं और फिर अपने अखण्ड व्रत का पारायण ( समापन ) अपने पति एवं बडो़ का आशीर्वाद लेकर करती हैं। परिवार में हर्ष के साथ पवित्र भोजन ग्रहण करती हैं।