देहरादून।
सनातन धर्म मंदिर गीताभवन में देहरादून में श्रीरामचरितमानस में कर्मयोग विषय पर अपने तीसरे प्रवचन में स्वामी मैथिलीशरण ने कहा सतयुग से लेकर द्वापर तक बड़े से बड़े पात्रों के जीवन में धन्यता तभी आई जब उन्होंने अपने चरम पुरुषार्थ का योग भगवान से कर दिया।
सोमवार को कथा का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा कि कर्म और पुरुषार्थ की परिणति जब भगवान के प्रति शरणागति में होती है, तभी वह कर्मयोग बनता है।
सुख तो कर्म में लिया जाता है, कर्म के परिणाम को तो भगवान को ही अर्पित किया जाता है, उसके बगैर वह अपूर्ण रहेगा,
बालि ने भी युद्ध में भगवान से हार कर ही भगवान को पहचाना, और अपने पुत्र अंगद के हाथ को भगवान के हाथ में दे दिया और अपने पुरुषार्थ के अहंकार को भगवान के चरणों में अर्पित कर दिया।
यह तनय मम सम बिनय बल कल्याण सन प्रभु लीजिए।
गहि बाँह सुर नर नाह आपन दास अंगद कीजिए।।
स्वामी मैथिलीशरण ने कहा कि कर्म की सबसे बड़ी सफलता तभी है जब उसका योग भगवान से हो जाए।
इस अवसर पर एस एस कोठियाल, राजीव गुप्ता, जय राज, पुष्पक ज्योति, जितेंद्र कपूर, इंद्रेश मिनोचा, परवीन वासन, शिवम् पुरी, गुलशन खुराना आदि मौजूद रहे।