एसडीएसी फाउंडेशन के वर्चुअल सस्टेनेबल डेवलपमेंट डायलॉग ‘उत्तराखंड में सड़क दुर्घटनाएं चुनौतियां और समाधान’ विषय पर विशेषज्ञों ने दिये सुझाव
देहरादून। आमतौर किसी भी सड़क दुर्घटना के दो कारण माने जाते हैं, ड्राइवर की गलती या ओवरलोडिंग। दुर्घटना के बाद पुलिस की जांच भी इन्हीं दो बिन्दुओं पर केन्द्रित होती है। लेकिन, वास्तव में हर बार दुर्घटना के कारण ये दो ही नहीं होते। वाहन व सड़क की स्थिति और दुर्घटनास्थल की परिस्थितियां भी दुर्घटना के लिए बराबर की जिम्मेदार होती हैं। यदि साइंटिफिक तरीके से हर दुर्घटना की जांच की जाए तो हम न सिर्फ दुर्घटना के असली कारणों तक पहुंच पाएंगे, बल्कि इससे दुर्घटनाओं को रोकने में भी मदद मिलेगी।
देहरादून स्थित एसडीसी फाउंडेशन की सस्टेनेबल डेवलपमेंट डायलॉग सीरीज के अंतर्गत उत्तराखंड में सड़क दुघर्टनाएं: चुनौतियां और समाधान विषय पर आयोजित वर्चुअल संवाद में विशेषज्ञों ने यह बात कही। इस वर्चुअल डायलॉग का संचालन एसडीसी फाउंडेशन के संस्थापक अनूप नौटियाल ने किया।
संवाद में शामिल सेव लाइफ फाउंडेशन के संस्थापक पीयूष तिवारी का कहना था कि उत्तराखंड में सड़क दुर्घटनाओं मे प्रति 100 एक्सीडेंट्स मे मरने वालों की संख्या का औसत राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक है । देश में 100 सड़क दुर्घटनाओं में औसतन 26 लोगों की मौत होती है, जबकि उत्तराखंड में यह संख्या 60 से 70 तक पहुंच जाती है। उनका कहना था कि किसी भी हादसे के पीछे सिर्फ ड्राइवर को दोषी मान लेने की मानसिकता से बाहर आना होगा। हमें यह बात स्वीकार करनी होगी कि ड्राइवर कितना भी कुशल हो, वह कहीं न कहीं गलती कर सकता है। ऐसे में हमें प्रयास करने चाहिए कि ड्राइवर की गलती के बाद भी हादसे में लोगों की जान बचाई जा सके। उन्होंने कहा कि हर हादसे का साइंटिफिक इंवेस्टिगेशन करके और सेफ सिस्टम एप्रोच अपनाकर हादसों और उनसे होने वाली मौतों को रोका जा सकता है।
एम्स ऋषिकेश के असिस्टेंट प्रोफेसर और ट्रामा सर्जरी स्पेशलिस्ट डॉ. मधुर उनियाल का कहना था कि सड़क दुर्घटनाओं में आम तौर पर वे लोग मारे जाते हैं, जो अपनी प्रोडक्टिव ऐज में होते हैं। ऐसे में ये मौतें न सिर्फ उनके परिवारों बल्कि पूरे समाज को कहीं न कहीं नुकसान पहुंचाती हैं। आमतौर पर यह धारणा है कि उत्तराखंड में आपदाओं में सबसे ज्यादा मौतें होती हैं, लेकिन वास्तव में राज्य में सड़क दुर्घटनाओं में भी बड़ी संख्या में मृत्यु होती हैं। आंकड़ों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि प्रोडक्टिव ऐज में होने वाली मौतों की संख्या में उत्तराखंड ऊपर है और सड़क दुर्घटनाएं इसका एक बड़ा कारण हैं ।
डॉ. उनियाल ने एम्स ऋषिकेश और एम्स दिल्ली के अपने अनुभवों के आधार पर बताया कि दिल्ली में दुर्घटनाओं के शिकार नॉन रिस्पांडस केस बड़ी संख्या में आते हैं। ये वे केस होते हैं, जिन्हें एडवांस हेल्थ केयर की जरूरत होती है। लेकिन, ऋषिकेश में ऐसे केस नहीं आते। डॉ. उनियाल कहते हैं कि दरअसल मौके पर या उसके आसपास चिकित्सा व्यवस्था न होने के कारण इस तरह के घायलों की हॉस्पिटल पहुंचने से पहले ही मौत हो जाती है। यदि दुर्घटनास्थल के आसपास प्राइमरी ट्रामा सेंटर्स हों और ऐसे गंभीर घायलों को जल्द से जल्द लेवल वन ट्रामा सेंटर्स तक पहुंचने की व्यवस्था हो तो उत्तराखंड में दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों को कम किया जा सकता है।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए एसडीसी फाउंडेशन के संस्थापक अनूप नौटियाल ने कहा कि उत्तराखंड मे सड़क दुर्घटनाओं की स्थिति अत्यंत चिन्ताजनक है। पिछले 5 वर्षों में राज्य में करीब 7 हजार सड़क दुर्घटनाएं हुई हैं और इनमें लगभग 5 हजार लोगों की मौत होने के साथ ही इतने ही लोग घायल भी हुए हैं। उन्होंने हाल के दिनों में हुई दुर्घटनाओं का जिक्र करते हुए कहा कि यदि प्राथमिक हेल्थ केयर सिस्टम में सुधार किया जाए तो राज्य में दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों की संख्या कम की जा सकती है।