देहरादून।
प्रेमनगर श्यामपुर में आयोजित श्रीमद्भागवत छटवे दिन की कथा का वर्णन करते हुए ज्योतिष्पीठ व्यास आचार्य शिव प्रसाद ममगाईं जी ने कहा कि जहाँ जन्म है वहीं मनुष्य का क्रम भी है । जीवन कर्म का पर्याय है इसलिए जीवन ही कर्म है मृत्यु कर्म का आभाव है मृत्यु के बाद चित पर उनकी स्मृति शेष रहती है, जो बुराई को जन्म देती है ।
संसार की गति अविरल व वृता कार है इसका न कही आदि है न अंत सृष्टि निर्माण एवं विध्वंस का कार्य सतत रूप से चल रहा है । जहाँ यह व्रत पूरा होगा तथा नई सृष्टि के लिए अवसर उपस्थित होगा इसी प्रकार कर्म व वासनाओ की गति भी वृत्ताकार है, कर्म से स्मृति व संस्कार बनते हैं तथा इन संस्कारों के कारण विषय वासना दुर्भावना जागृत होती है। वासना आसक्ति से जन्म म्रत्यु पुनर्जन्म का चक्र आरम्भ होता है।
वासना का मूल अहंकार है अहंकार के गिर जाने से विषय वासनाएं समाप्त हो जाती है । भोग प्रारबधिन है व भगवान ने मनुष्य को क्रिया शक्ति दी है क्रिया को व्यर्थ गवाने पर पाप व अर्जित करने पर सुखानुभूति होती है अहिंसा के सिद्धांत जिस तत्व में मानने की व्यवस्था है, वही सनातन धर्म है।
हमारा चित संसार व आत्मा के बीच का सेतु है जो विषय वासना की पूर्ति के साधन है दूसरी ओर चित जड़ है यह आत्मा के प्रकाश से प्रकाशित होता है यह चेतन आत्मा सूक्ष्म है अतः प्रवृत्ति सदैव दिखती है ।
आज विशेष भण्डारे पूर्ण आहुती के साथ भागवत जी का समापन हुआ। कांग्रेस के वरिष्ठ उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना वहीं जर्नल ओमप्रकाश राणा नें भी कथा श्रवण किया। साथ में सुदर्शन सिंह राणा, अधिराज सरोज, संगीता, शिवांग, गजपाल राणा, शिवदयाल राणा, सज्जन सिंह, अमीरचंद, पदमा देवी, लक्ष्मण बर्थवाल, रेखा, भरत बर्थवाल, रिंकी, आचार्य दामोदर सेमवाल, आचार्य संदीप बहुगुणा, आचार्य द्वारिका नौटियाल, आचार्य प्रदीप नौटियाल, आचार्य सुनील ममगांई, आचार्य अनूप भट्ट, केसर सिंह भण्डारी, चन्द्रकला, जीतपाल नेगी, शशी नेगी, हुक़्म बिष्ट, शांति बिष्ट, ताजबर बासकंडी, सुमन बासकंडी, देवेंद्र नेगी, सौम्या नेगी, विकास नेगी, मेघा, जितेंद्र कंडारी, डौली, प्रभा रावत, युद्धबीर नेगी, विक्रम नेगी, दर्शनी देवी, दरवान नेगी, दलबीर, बसंती बड़थ्वाल, कीर्ति भण्डारी, मेहरवान कठैत, महिपाल फ़र्श्वान, विजय रावत आदि भक्त गण भारी संख्या में मौजूद रहे।