देहरादून।
प्राचीन भारतीय दार्शनिक प्रकृति के कण-कण को इईश्वर अंश से व्याप्त मानते हैं ,वे पिंड में ब्रह्मांड का दर्शन करते हैं उनके लिए प्रकृति पर्यावरण के प्रति सम्मान और ईश्वर के प्रति सम्मान का बोध कराता है, इस प्रकार भारतीय दर्शन नैतिक पर्यावरण को भावनात्मक सम्बन्धों से उर्वर बनाता है । बौद्धिक संबंधों से उसकी रक्षा करता है आध्यात्मिक संबंध से अनुप्राणित करता है भारतीय दर्शन का पर्यावरण परक परिपूर्ण एवं परम शुभ है , जबकि पाश्चात्य पर्यावरणपूरक चिंतन शुष्क बौद्धिक धरातल में नीतिशास्त्र के शुभाशुभ बौद्धिक तर्कों के बीच जांबाज एवं खंडित प्रतीत होता है। हमारे धर्म ग्रंथ सभी सभी प्रकार के गो रक्षण वृक्ष रक्षण जल संरक्षण का बोध करवाते हैं और मानव को अपने जीवन में दीर्घायु जीने का ज्ञान देते हैं भोग वृत्ति दीर्घायु में बाधक होती है जबकि ज्ञान योग शुभ कर्म व्यक्ति की आयु में सहायक होती है यह बात आज महिला कल्याण समिति के द्वारा आयोजित गढ़वाल सभा शिव मंदिर में कथा के अंतिम दिन ज्योतिष वेद व्यास पद से अलंकृत आचार्य शिव प्रसाद ममगांई ने व्यक्त किए।
गुरुवार को कथा का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा कि हमारे यहां संगीत ढोल नगाड़े मसक वंशी आदि काम क्रोध लोभ आदि को कम करने वाली विधि व्यवस्था एवं वाद्य यंत्र हैं। जबकि विदेशी संगीत काम आदि दोषों को बढ़ाने वाला है। हमारा खान पान रहन सहन आयु व्रत होता है अपने बच्चों को संस्कार देते हुए धार्मिक आयोजनों का ज्ञान धर्म स्थलों पर जाकर अपनी पहचान शिखा चोटी जनेऊ रखने का भी ध्यान देना एक संस्कार में आता है । यही भारतीय दर्शन कहता है।
आचार्य ममगांई कहते हैं जब हम लोग धार्मिक हुई या अन्य महत्वपूर्ण विषयों की बातों को नोट करते हैं डायरी में लिखते हैं जो जितने महत्व का होता है उससे उतना ही सुरक्षित रखने का प्रयास करना चाहिए। भगवान शंकर पर्वत से कहते हैं सुंदरता मरजाद भवानी हे भवानी पति के लिए पत्नी की वही सुंदरता उपयोगी है जो मर्यादा युक्त हो अभी कन्या है तो माता से भय है, पिता के बस में है सील लज्जा संकोच है तो पति के घर ऐसी अपेक्षा की जा सकती है ऐसा की मेरे प्रभु राम जैसे स्थाई कागज है कि पटेल क्योंकि जो मन में रखा वह अल्पकालिक होता है किंतु जो चित पर चढ़ जाए वहां इस शरीर के नष्ट होने पर ही आत्मा के साथ बने रहता है जितेश जिसे कहते हैं पूर्व जन्म का संस्कार रामजी ने सीता जी के अंतर हंसने शोभा और सद्गुणों को अपने चित्र की दीवार पर प्रेम की पराकाष्ठा रूपी ट्रांसफर एसबीआई से अंकित कर लिया तात्पर्य है सीता जी राम जी को बार-बार चित पर ला रही थी यहां न्यूना धिकता हो सकती है यही हमको भी प्रभु को चित पर स्थापित करके मन में भाव रखकर व्यवहार करना चाहिए आदि प्रसंग पर भाव विभोर हुए।
आज विशेष रूप से महिला कल्याण समिति की अध्यक्ष लक्ष्मी बहुगुणा, अध्यक्ष रोशन धस्माना, महासचिव भण्डारी, कोषाध्यक्ष सन्तोष गैरोला, पूर्व सदस्य बद्रीनाथ हरीश डिमरी तपन भट्टाचार्य, संघ के विनय कुकशाल, आनंद जोशी, आचार्य दामोदर सेमवाल, आचार्य संदीप बहुगुणा, आचार्य दिवाकर भट्ट, अजय जुयाल, शुभम सेमवाल, आयुष ममगांई, मीना सेमवाल, इन्दू जोशी, सरस्वती रतुडी, हर्ष बर्धन खण्डूरी, राजमती सजवाण, मुन्नी पुण्डीर, शकुन्तला नेगी, सरिता लखेडा, दीपक उनियाल बिजय पंत आदि मौजूद रहे।