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आत्मबोध होने पर पूण्य पाप से मुक्ति मिलती है: ममगाईं जी

देहरादून।

भगवान कृष्ण ने अपने परम प्रेमी उद्दव से कहा इस जगत में जो भी मन से सोचा जाए, इंद्रियों से अनुभव किया जाय वह सब नाशवान के साथ ही माया मात्र है। संसार क्या है संसार मे क्या है चित में भरी अशुभ वासनाओं से मनुष्य जागृत होकर अपने को बचा सकता है । यह प्रवचन सरस्वती विहार ई ब्लॉक में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के अंतिम दिवस पर आचार्य शिव प्रसाद ममगाईं जी ने व्यक्त किये।

कथा का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा कि मनुष्य का अपना गुरु अंतःकरण है,जिसे पूर्णतः मनुष्य स्वयं समझकर समर्थन देता है । सबसे सीख लेने की आदत प्रत्येक व्यक्ति को होनी चाहिये।

दत्तात्रेय संत ने 24 गुरु बनाये। जो मनुष्य आसक्ती रहित हो उसका चित परमात्मा में लगा रहता है, जो द्वेत भाव मे मुक्त होकर ईर्ष्या द्वेष नही करता वह सफलता असफलता दोनों में स्थिर रहता है। वह कभी दुख बन्धन में बढ़ता नही। मनुष्य न हो तो पृथ्वी पर भलाई नही होगी। भलाई को मानुस की चेतना ने जन्म दिया है। ब्रह्मा विष्णु महेश समस्त देवतागण पूरे ब्रह्मांड नायक के संकेत पर सृजन पालन संहार करते हैं। ह्रदय में सद्गुणों का कमल खिलाने पर स्वभाव रूपी लक्ष्मी का प्रवेश होता हैं। संसार से आसक्ति मुक्ति में बाधक होती है।

आत्मबोध होने पर पूण्य पाप से मुक्ति मिलती है । अद्वेत तत्व विशुद्ध चिन्मय आत्मा है। धन से निर्धनता मिलती है व अच्छी सोच रखने से शांति संसार मे परमात्मा को छोड़कर सब अनित्य है ।

आपसी सौहार्द प्रेम सद्गुण स्वभाव रूपी सुगन्ध से सब प्राणियों का खिंचाव अपनी तरफ करना यह मनुष्य की मानवता का परिचय है। आदि प्रसंगो पर कार्यकर्ताओं के द्वारा विशाल भण्डारे के साथ श्रीमद्भागवत का विराम हुआ।

आज विशेष रूप से भागा देवी, शांति उनियाल, पुष्पा सुंदरियाल, रविंद्र धर्मेंद्र, आचार्य अनुसुइया प्रसाद ममगाईं, अर्पिता, अस्मिता, शिखा, जगमोहन तोपवाल, आशु बहुगुणा, रणजीत पुंडीर, मदन रावत, जयदीप असवाल, अनिष्का, जोत सिंह पायल, आचार्य शिव प्रसाद सेमवाल, गीतांजलि, भगवान सिंह, दीवान सिंह, वीरेंद्र बिजल्वाण, आचार्य हर्षपति घिल्डियाल, आचार्य संदीप बहुगुणा, आचार्य संदीप भट्ट, आचार्य हिमांशु मैठाणी, आचार्य प्रकाश भट्ट, गोदाम्बरी कोठारी, आदि मौजूद रहे।

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