देहरादून।
भारत देश मे सभी संस्कार उत्पन्न हुए हैं। देवी के स्वरूपो को कहीं राधा, कही सीता, कहीं सरस्वती तो कहीं लक्ष्मी के रूप में पूजा जाता है। वह प्रकृति नित्य मानी गयी है। उक्त विचार ज्योतिष्पीठ व्यास आचार्य शिव प्रसाद ममगाईं जी ने नव विहार कलोनी चुखुवाला में चल रही श्रीमद्देवी भागवत में व्यक्त किये।
शुक्रवार को कथा का वर्णन करते हुए कहा कि परमात्मा की सास्वत लीला है। अग्नि में जलाने की शक्ति, चंद्रमा व कमल में कमनीयता शोभा शक्ति, सूर्य में प्रभात शक्ति रहती है। वैसे ही यह प्रकृति परमात्मा में नित्य विराजमान रहती है। जैसे स्वर्णकार सोने के बिना आभूषण, कुमार मिट्टी के बिना बर्तन नही बना सकता वैसे ही परमात्मा भी सृष्टि के निदान कारण है ।
शक्ति सब्द में दो शब्द है स ऐश्वर्य वाचक अक्ति पराक्रम वाचक है जिस प्रकति में वाक चातुर्य व पराक्रम दोनों ही विद्यमान है उसे शक्ति कहते हैं। उसी तरह भगवती में भी दो शब्द है भग का मतलब ऐश्वर्य वति का मतलब षड ऐश्वर्य है अतः ज्ञान समृद्धि यश बल से परिपूर्ण होने के कारण प्रकृति देवी ही भगवती शक्ति है। उस शक्ति से युक्त होने के कारण परमात्मा भी भगवान कहलाता है । ये सर्व तन्त्र स्वतंत्र होते हुए आत्मप्रभु साकार व निराकार भी है। इनका निराकार भी परम् तेजमय है योगी परुष सदा उसी तेजमय पुरुष का ध्यान करते हुए कहते हैं कि परमात्मा सर्वत्र ईश्वर व आनंद स्वरूप है। उस अवस्था मे प्रकृति पुरुष का सम्बंध रहता है इसलिए वह सत चित आनंदमय है अदृश्य है किंतु सभी को दिखती है।
इसी कारण यह सर्व स्वरूप है ये ब्रह्म ओंकार के मध्य भाग में विराजते हैं गौ के सुशोभित उस गो लोक में भी श्रीकृष्ण भगवान की अज्ञानुसार ब्रह्म आदि देवता राधा की पूजा करने लगे तत्पश्चात सुयघ राजा ने उस राधा देवी का पूजन किया। भगवान शंकर के आदेश से सबने राधा की उपासना करी अनेक कलाओं से राधा व शक्ति की जो कलाएं उतपन्न हुई उनकी भारतवर्ष में पूजा हुई और होनी भी चाहिए। तभी से घर घर मे देवी के स्वरूपो की पूजा हुई आदि प्रसंगों पर श्रोता भाव विभोर हुए यह देवी भागवत यज्ञ एक मंगल उत्सव सा प्रतीत हो रहा है।
कथा में कमलानंद भट्ट, संजय, जानकी देवी, विशालं मणि रतूड़ी, राजीव नारायण, कमला प्रसाद भट्ट, जगदीश प्रसाद रणाकोटि, गीता भट्ट, साफल्य, अक्षित, विमल, सर्विल, सोनी देवी, दिनेश, मंजू, जगदम्बा चमोली, आचार्य दामोदर सेमवाल, आचार्य दिवाकर भट्ट, आचार्य संदीप भट्ट, आचार्य मुरली सेमवाल, आचार्य संदीप बहुगुणा, आचार्य हर्षमणि चमोली आदि मौजूद रहे।