रुद्रप्रयाग।
श्रीमद्भागवत की रचना समस्त वेद पुराण लिखने के बाद असंतुष्ट मन को संतुष्ट करने हेतु व्यास जी ने बद्री धाम में लिखा और शुकदेव जी को पढ़ाकर मूल में भक्ति ज्ञान वैराग्य की कथा रखी। भक्ति का मतलब कोई भी काम भगवान को मन में रखकर करना है। कर्तव्य का बोध होने को ही ज्ञान कहते हैं । आसक्ति रहित कर्म करने को ही वैराग्य कहते हैं । भक्ति में क्रोध ज्ञान में काम व वैराग्य में लोभ बाधक है।
उक्त विचार ज्योतिष पीठ व्यास आचार्य शिव प्रसाद मंमगाई रुद्रप्रयाग जखोली के लौंगा गाँव में चल रही श्रीमद्भागवत कथा में व्यक्त करें ।
कथा का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा वेद पुराण शास्त्र मनुष्य को केवल ज्ञान ही नहीं बल्कि प्रकृति के सभी मूल भूत यम नियम संयम सामान्य विज्ञान वा कर्तव्य बोध होता है। संचित को प्रारब्ध कहते हैं जिसे हम भोग रहे हैं।
क्रियमान कर्म नया प्रारब्ध बनके आता है ।

कर्म करते समय कोई इच्छा ना रखते हुए जब हम कर्म करते हैं तो वह आगे बढ़ाने वाला होता है । जो पिछले दिन किसी के उपकार को न माने परोत्कर्ष असहन हमारे जीवन पद की सबसे बड़ी बाधा है। अंतिम श्वास तक कर्म करते रहना आवश्यक है। ज्ञान बिना मुक्ति नहीं मिलती। जितना मनुष्य सुखी उतना भ्रमित जबकि जितना दुखी उतना एकाकी होता है । अपनी बुराइयां सुनकर मन को स्थिर रखने वाला व्यक्ति जीवन पथ पर आगे बढ़ता है। दूसरों की बुराइयों को सुनने वाला अज्ञानी है ।

माता-पिता से द्वेष रखने वाला धुंधकारी जो शब्द स्पर्श रूप रस गंध रूपी 5 वेश्याओं के चक्कर में जन्म मरण रूपी परेशानी में पढ़ता है। वह सब का भला करने वाला व्यक्ति ही गोकरण है।
इसके बाद श्रीमद् देवी भागवत की कथा आचार्य जय प्रकाश गोदियाल के द्वारा की गई। जिसमें प्रकृति का वर्णन वा देवी भागवत का महात्म व भगवती देवी का दिव्य चरित्र एवं अद्भुत लीलाओं का वर्णन किया गया।
आयोजक एवं सहयोगी में गोदम्बरी देवी, अनिल कोठारी, सुनील कोठारी, संजय कोठारी, हनुमान कोठारी, दिनेश कोठारी, ब्रज मोहन कोठारी, पूर्णानंद कोठारी, गुणानंद कोठारी, विजय राम कोठारी,देवेंद्र कोठारी, राकेश कोठारी, लव, नरेश, मुकेश, सुरेश, जगदीश कोठारी, सतीश, आशीष कोठारी, माया राम कोठारी आदि मौजूद रहे।
पितृ गण :
वैकुंठ वासी तोताराम कोठारी,
वैकुंठ वासी चंद्रमणि कोठारी,
वैकुंठ वासी नारायण दत्त कोठारी,
वैकुंठ वासी से विद्या दत्त कोठारी,
वैकुंठ वासियों से जगतराम कोठारी,
वैकुंठ वासी राजेंद्र कोठारी व अन्य सब पितृ गण ।
ब्राह्मण गण : हरिप्रसाद काला,उपेंद्र काला, जीत मणि तिवारी, विनोद नौटियाल, मोहित जोशी, हितेश पंत, कमल आदि मौजूद रहे।